अजीबोगरीब(प्रवीण जी): लाड़ली बेटी जब से स्कूल जाने हैं लगी,हर खर्चे के कई ब्योरे माँ को समझाने लगी।
फूल सी कोमले और ओस की नाजुक लड़ी,
रिश्तों की पगडंडियों पर रोज मुस्काने लगी।
एक की शिक्षा ने कई कर दिए रोशन चिराग,
दो-दो कुलों की मर्यादा बखूबी निभाने लगी।
बोझ समझी जाती थी जो कल तलक सबके लिए,
घर की हर बाधा को हुनर से वहीं सुलझाने लगी।
आज तक वंचित रही थी घर में ही हक के लिए,
संस्कारों की धरोहर बेटों को बतलाने लगी।
वो सयानी क्या हुई कि बाबुल के कंधे झुके,
उन्हीं कन्धों पर गर्व का परचम लहराने लगी।
पढ़-लिखकर रोजगार करती, हाथ पीले कर चली।
बेटी न बेटों से कम,ये बात सबको समझ में आने लगी।।
बेटियाँ हमारा गर्व हैं,हमारा स्वाभिमान हैं!राष्ट्रीय बालिका दिवस पर देश की सभी बेटियों को उज्जवल भविष्य,स्वस्थ एवं शिक्षित जीवन की शुभकामनाएं