प्रेम रंग बरसाओ ना, कान्हा वृंदावन आओ ना
तुम बिन जीवन मेरा कोरा,आके दरश दिखाओ ना
सूनी सूनी लगत है, ये बृज की कुंज गलियां
प्रेम रंग की पिचकारी से,तन मन मेरा भिगाओ ना
आशा और निराशा बीच,झूल रहा है जीवन मेरा
मुझको अपना बना ले, क्या लागे है कान्हा तेरा
प्रेमपाश का फेंको रंग,प्रभु मै भी रंग जाऊं ना
बिन श्रद्धा भक्ति से,नीरस बीत रहा है जीवन मेरा
कभी किसी का बुरा ना हो,ऐसा भाव आये ना
जितनी हो मुझसे,पर सेवा कभी मना कर पाऊं ना
सुख शांति फैले चहुंओर,ऐसी बयार बहा दो
झोली मेरी भी भर दो प्रभु,प्रेम रंग बरसाओ ना
सविता जैन मनस्वी स्वरचित रचना