न्याय की तलाश में यादव जी

खगड़िया स्टेशन से आज़ाद राजीव
फरकिया का गौरव बुक स्टॉल,बदहाल
नेटवर्क डेस्क/पत्रकार नगर, खगडिया।संचार के आज हम अपने #श्रेष्ठ समय में है। हर चीज डिजिटल है। किताबों से लेकर रिश्ते तक। साथ की तस्वीर में मैं जिनके साथ हूँ, उन्हें सबलोग ‘यादव जी’ कहते हैं। इनका पूरा नाम शत्रुधन प्रसाद यादव है। उम्र लगभग 70 साल। मानसी के रहने वाले हैं और खगड़िया जंक्शन पर पिछले 1972 यानी लगभग 50 साल से व्हीलर कंपनी के तहत पत्र-पत्रिकाओं की दुकान चला रहे हैं। एक समय ऐसा था कि इनकी छोटी सी दुकान में बड़े-बड़े लोगों की भीड़ लगी रहती थी। क्या पत्रकार-क्या राजनेता? सभी अखबार एवं पत्र-पत्रिका पढ़ने-खरीदने के लिए लाइन लगाए रखते थे। उस समय तक रिश्ते और शब्द दोनों जिंदा थे। आज यादव जी के किताब दुकान से ग्राहक और किताबें दोनों गायब हैं। यादव जी कहते हैं कि-‘अब कोई नहीं पढ़ना चाहता! ना बड़े और ना बच्चे। पत्र-पत्रिका कौन कहे? अखबार की बिक्री भी समाप्तप्राय है।’
कभी प्रतिदिन हजार-दो हजार की बिक्री करने वाले यादव जी सौ-दो सौ की बिक्री को अपनी किस्मत मान बैठे हैं। उनके दर्द और पीड़ा का कारण सिर्फ बिक्री का कम होना ही नहीं है रेलवे द्वारा बदला जा रहा नियम भी है। व्हीलर कंपनी इनसे दुबारा अनुबंध करना चाहती है लेकिन शर्तें काफी महंगी है। यादव जी कहते हैं कि बिक्री ना के बराबर है पर व्हीलर कंपनी उनसे मनमाना पैसा लेना चाहती है और नहीं देने की स्थिति में दुकान को बंद करवाने की धमकी देती है। 70 साल से ज्यादा उम्र के यादव जी जो अपने जीवन के स्वर्णिम 50 साल खगड़िया जंक्शन पर गुजार चुके हैं आज कहाँ जाएं? किसके आगे हाथ फैलाएं? किससे न्याय की गुहार लगाएं? शब्दों से खेलने वाले ‘यादव जी’ आज निःशब्द हैं।

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