जयपुर,राजस्थान(जे पी शर्मा):सिख गुरु परम्परा का इतिहास विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध जनता को संगठित करके प्रतिरोध का इतिहास है। सत्य एक है उस तक जाने के मार्ग अनेक है के सिद्धांत की रक्षा के लिए गुरु हरगोविद ने “मीरी और पीरी “की घोषणा की ।गुरु अर्जुन देव ने बलिदान दिया व गुरु गोविंद सिंह ने खालसा की स्थापना की।धर्म भारत का जीवन मूल्य है जिसकी रक्षा सिख परम्परा द्वारा की गई। गुरु तेगबहादुर ने धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया इस कारण “हिन्द की चादर”कहा गया। गुरु तेगबहादुर के 400वें प्रकाश पर्व पर हम सभी भारत के विचार की रक्षा का प्रण ले। यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय कार्यकारिणी सदस्य हनुमान सिंह ने व्यक्त किए। वे भारतीय अभ्युथान सामिति ,जयपुर के तत्वावधान में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे।राजस्थान विश्वविद्यालय में गुरु तेगबहादुर साहिब के 400 वे प्रकाश वर्ष के उपलक्ष में विशिष्ट व्याख्यान आयोजित किया गया था। इस व्याख्यान का विषय “राष्ट्र निर्माण में सिख समुदाय का योगदान” रहा । कार्यक्रम समन्वयक डॉ सुरेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि इस आयोजन का उद्देशय सिख समुदाय के गौरवशाली इतिहास को समाज के सम्मुख लाना है। कार्यक्रम अध्यक्ष
डॉ.अमनदीप सिंह डी.आई.जी CDTI ने अपने उद्बोधन में बताया कि भारतीय उपमहादीप में राष्ट्रवाद की नींव रखने का श्रेय गुरु गोविंद सिंह को जाता है जिन्होंने सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधा। सनातन धर्म जब गंभीर संकट में था तब सिख समुदाय ने सनातन परंपरा की रक्षा की।सनातन धर्म के प्रेम के संदेश को सिख धर्म ने केवल आगे बढ़ाया अपितु उसकी रक्षा भी। मुख्य अतिथि अजयपाल ,अध्य्क्ष राजस्थान सिख समाज ने बताया कि सिख धर्म किसी धर्म के विरूद्ध नही रहा अपितु हमेशा अन्याय व शोषण के विरुद्ध रहा है। विशिष्ट अतिथि डॉ अनिल शर्मा ने बताया कि हमे गुरु तेगबहादुर के संदेश को स्मरण रख ना किसी से डरना चाहिये,ना ही किसी को डराना चाहिए l इसी की मिसाल गुरू तेग बहादुर ने स्वयं का बलिदान देकर दी थी। अंत मे आयोजन सचिव डॉ.रामनिवास जांगिड़ द्वारा सभी का धन्यवाद दिया गया।
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