चौपाई
*चाह महाकाव्य रचना*
महाकाव्य रचना है मुझको ,शारद माँ विद्या दो हमको ।
पूर्ण करो माता अभिलाषा, हो छंद नवल विशुद्ध भाषा।।
हर पृष्ठ अनूठे पद सृजना,लिखूँ विसंगतियों पर रचना।
पढ़े विद्व जन जब पुस्तक को ,फेरे स्नेह हस्त मस्तक को ।।
माता श्वेता लगन मुझे दो, शब्द सामर्थ्य शक्ति हमें दो।
महाकाव्य रच लूँ मैं ऐसी, रुचिर भाव जन मानस जैसी ।।
छंद ताल लय गति हो परिमल, नाद सृष्टि विमल बहे कलकल ।
महाकाव्य शुचि प्रसाद दिनकर , वर माता कृपा विद्व मति पर ।।
जब शारद मातु कृपा होती, हिय सुबुद्धि अज्ञानी बोती ।
मान लेखनी नित्य दिलाती ,दीनन को जब न्याय दिलाती ।।
मूल मंत्र जग में हो समता , मोल बताना है सबको ममता ।
घर को सब लौटे परदेशी , काव्य सीख नित जागृत देशी ।।
नित्य साधना के पथ चलना, काव्य मनोहर लिखना है ।
नाम अमर कृति से हो जाए , सकल परिवार गौरव पाए ।।
कृपा वाग्देवी होती जिसपर ,दे मातु विलक्षण प्रतिभा भर ।
शान्ति संदेश जग में देना , कवि उद्देश्य पूर्ण लिख लेना ।।
प्रो उषा झा रेणु
देहरादून