*खरतरगच्छ की आन,बान,ओर शान खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिन मणिप्रभसुरीश्वर जी म सा*
*50वर्ष पूर्ण होने एवम 51वे में प्रवेश के उपलक्ष में विशेष लेख*
*तिरपातूर (भुवाल माजीसा टाईम्स)*
वीरों की मरुभूमि प्रदेश राजस्थान के रेतीले टीलों की अथाह संपदा वाले,एक समय के सबसे पिछड़े जिले ओर आज के सबसे धनी जिले का गौरव लिए काला सोना (क्रूड ऑयल) उगलने वाले बाड़मेर जिले के छोटे से कस्बे लेकिन धार्मिक एव आर्थिक दृष्टि से सम्पन मोकलसर का नाम जन जन की जुबान पर है।
इसी नगर की पावन भूमि धरा पर विक्रम संवत २०१६ फाल्गुन सुदी १४ को लुंकड़ परिवार के धर्मनिष्ठ श्रावक श्री पारसमल जी के घर श्रीमती रोहिनिदेवी की कुक्षी से एक बालक ने जन्म लिया,जिन्होंने 12 मार्च 2016 के शुभ दिवस पर खरतरगच्छ के सुखसागर समुदाय में गच्छाधिपति आचार्य पदवी पर आसीन हुवे,ओर आज जन जन के ह्रदयों में बसे हुवे है।
ऐसे बालक का सांसारिक नाम मीठालाल रखा गया। बालक जैसा नाम वैसे ही गुण के अनुरुप ही शक्कर के समान मीठा था।जैन समाज के अग्रणीय श्री पारसमल जी का व्यापार दक्षिण भारत के कर्नाटक
राज्य के हुबली क्षेत्र में था,ओर उनका परिवार मारवाड़ में रहता था,इनका व्यापार और परिवार हर क्षेत्र में दिन दुगुनी रात चौगुनी प्रगति कर रहा था। किंतु होता वही है जो कुदरत को मंजूर होता है।बचपन मे ही छोटी सी उम्र में ही पिताजी श्री पारसमल जी का निधन होने से माताजी रोहिणीदेवी को बहुत बड़ा आघात लगा।
भाई,बहिन दोनों को पितृ वात्सल्य से वंचित रहना पड़ा,उनका मन असार संसार से विरक्त हो गया।उस समय मीठालाल की उम्र मात्र ४ वर्ष की ओर पुत्री विमला मात्र ६ माह की थी।उस दुखद घटना से श्रीमती रोहिणीदेवी
की एक आंख में पति का विछोह के दर्द का समुंदर था तो दूसरी आंख में अपने ह्रदय को पाषाण बनाकर अपने जीवन साथी की आकांक्षाओं ओर अरमानों को पूरा करने के लिए हताशा एव निराशा को दूर फेंककर,साहस का दामन थामा जिससे उनके शरीर के रोम रोम में तेजस्विनी का ओजस्वी स्वरूप खिल उठा।
वह संयमी जीवन व्यतीत करने लगी।उनहोने अपने बच्चो की प्राथमिक शिक्षा हेतु गांव की स्कूल में ही दाखिला करवा दिया।
लेकिन रोहिनिदेवी के मन में कुछ और ही चल रहा था।उनकी भावना अपने भावी जीवन को संवारने के लिए दीक्षा लेने का मन ही मन विचार करने लगी।गांव में होने वाले चातुर्मास में विराजित साधु साध्वी जी से मिलना,जुलना,दर्शन करना,संवाद करना,धर्म ज्ञान की चर्चा करने लगी।
विक्रम संवत २०२९ के चातुर्मास की अवधि में श्री नाकोड़ा तीर्थ पर परम पूज्य श्री जिन कांतिसागर सूरीश्वर जी म सा एव पुजनीय गुरूवर्या आगम ज्योति प्रवर्तिनी श्री प्रमोद श्री जी म सा की सुशिष्या परम् तपस्विनी,सेवाभावी,श्री प्रकाश श्री जी म सा आदि की पावन एव परम निश्रा में उपधान तप का आयोजन होने पर माताजी रोहिणीदेवी ने उसमे भाग लिया।कूछ समय बाद बालक मीठालाल अपनी माँ से मिलने नाकोड़ाजी आये श्री कांतिसागर सुरीश्वर जी म सा खरतरगच्छ में ही नही बल्कि सम्पूर्ण जेने जेनेत्तर समाज मे प्रसिद्ध साधु थे।अन्य श्रावको की तरह ही बालक मीठालाल भी आचार्य श्री के दर्शन,वन्दन कर करने गये, तब गुरुदेव अकेले ही थे,विधि पूर्वक वन्दना करने के बाद चेहरे की शांत,सौम्य,मुस्कान आंखों की मासूमियत देखकर गुरुदेव बालक से प्रभावित हुवे बिना नही रहै।
उस दिन तो मीठालाल से परिचय कर नपी तुली भाषा के प्रश्नों के जरिये ही वार्तालाप हुई।गुरुदेव को उसी दिन इस नन्हे बालक को देखकर अपने ज्ञान से मालूम हो गया कि एक दिन यही बालक सम्पूर्ण धरा पर गच्छ ओर समाज का नाम रोशन करेगा।
गुरुदेव ने छोटे से स्तर पर उसकी परीक्षा ली और बालक ने बड़ी ही सहजता से सभी प्रश्नों का सही जवाब दिया।
गुरुदेव ने यह अनुमान लगाया कि यदि इस बालक को दीक्षित किया जाय तो भविष्य में यह बालक एक प्रखर,एव प्रभावशाली साधु बनने योग्य है।
इस बीच समय बीतता रहा पूर्व योजनानुसार मॉ,बेटा, बेटी तीनो ही बस द्वारा मोकलसर से अहमदाबाद रेलगाड़ी द्वारा ओर वह से बस द्वारा ज्येष्ठ वदी १० को पालीताना पहुच गए।
वहा पर परम पूज्य आचार्य श्री मज्जिन कांतिसागर सुरीश्वर जी महाराजा के दर्शन कर विश्राम किया।आखिरकार गुरुदेव ने दीक्षा की आज्ञा प्रदान कर दी।
वह शुभ धड़ी भी आ गई विक्रम संवत २०३० आसाढ़ वदी ७ को मात्र १३ साल की उम्र में मीठालाल,१० वर्ष की उम्र में कुमारी विमला हरिविहार के ऊपर वाले हाल में पहुचे जहा आसन पर चरवला,मुहपत्ति,तैयार थे।
चौमुखी परमात्मा भी विराजमान थे। उसी समय विधि विधान से भाई-बहिन दोनों की दीक्षा हो गई।पूज्य गुरुदेव ने पूज्य सुखसागर जी महाराजा के समुदाय परम्परा के अनुसार महोपाध्याय श्री क्षमाकल्याण जी की वासक्षेप का उच्चारण कर मीठालाल को प पूज्य मुनि श्री मनीप्रभसागर जी म सा नाम रखा एव कुमारी विमला को आगम ज्योति प पूज्य प्रवर्तिनी श्री प्रमोदश्री जी म सा की शिष्या घोषित कर प पूज्य साध्वी श्री विधुतप्रभा श्री जी म सा नाम रखा गया।
उस समय माताजी सहित पूरे परिवार ने दोनों को आशीर्वाद दिया,लेकिन नियति को कूछ ओर ही मंजूर था।ठीक दो घण्टे बाद माताजी रोहिणी देवी को भी उसी हाल में विधि विधान पूर्वक दीक्षा दी गई जिनका नाम प पूज्य साध्वी श्री रत्नमाला जी म सा रखा गया।
आपका युवाकाल अत्यंत ही मेघावी एव प्रतिभाशाली रहा है मात्र १३ वर्ष की अल्प आयु में दीक्षा ग्रहण करते ही गुरुदेव द्वारा धार्मिक क्रिया का एक पाठ स्मरण करने को देने पर उसके स्थान पर तीन तीन पाठ का रटन कर गुरुदेव को सुनाते ही गुरुदेव अपने शिष्य की तीव्र प्रतिभाशाली बुद्धि देखकर मन ही मन हर्षपूर्वक विभोर हो हो जाते थे।क्यो न हो पूज्य गुरुदेव के प्रथम एव प्रधान शिष्य होने के साथ ही बहुत ही निकट एव प्रिय शिष्य थे।
ज्ञान पिपासा आपके व्यक्तित्व का विशिष्ट गुण है,अपने छोटे हो या बड़े कार्य आप स्वयं संपादित करते थे।महामूल्यवान जीवन का एक क्षण भी आलस्य,प्रमाद,निरथर्क,वार्तालाप एव इधर उधर की बातों में व्यतीत नही करते थे।
आपके द्वारा अब तक कई पुस्तको का प्रकाशन किया जा चुका है,आचार्य गुरुदेव श्री कांतिसागर जी म सा के महाप्रयाण के बाद विक्रम संवत २०४२ से आप श्री ने देश के विभिन प्रान्तों में विहार कर चातुर्मास किये।सभी स्थानों में आपकी अदभुत क्षमता थी ।आपको एक कर्मठ शासक,ओर प्रभावक,सुविख्यात,एव कुशल वक्ता होने के कारण जैन श्री संघ पादरू(बाड़मेर) द्वारा दिनांक २४ जून १९८८ को गणि पदवी से ,२६ जनवरी २००१ को गढ़ सिवाना में श्री खरतरगच्छ संघ द्वारा उपाध्याय पद से विभूषित किया गया।
आपके कई चातुर्मास तो इतिहास के पन्नो पर सवर्ण अक्षरों से लिखे गए।परम पूज्य गुरुभगवन्त,प्रज्ञा पुरुष,आचार्य श्री जिन कांतिसागर सूरीश्वर जी म सा की पुण्य स्मृति में विश्व का पहला अनूठा जहाज मन्दिर जालौर जिले के मांडवला नगर में बनाया गया जो आज जन जन कि आस्था का केंद्र बना हुवा है तथा यहा हर वर्ष हजारो श्रद्धालु आते है।
अपने अपने संयम जीवन मे लगभग 141 से अधिक दीक्षाये,226 के आस पास जिन मन्दिरो की अंजनशलाकाये व प्रतिष्ठा,उपधानतप,पेदल यात्रा संघ,आदि महत्वपूर्ण कार्य आप ही के सानिध्य में सम्पन हुवे।
गज मन्दिर आदि आप ही कि निश्रा के साक्षी बने।
इसी क्रम में बाड़मेर नगर से 5 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राज मार्ग पर अहमदाबाद हाईवे स्थित परम् पूज्य बहिन म सा साध्वी डॉ श्री विधुतप्रभा श्री जी की पावन प्रेरणा से निर्मित कुशल वाटिका पर विक्रम संवत २०६७ दिनांक 29/04/11 को आप श्री की निश्रा में श्री मुनिसुव्रत स्वामी जिन मन्दिर की चल प्रतिष्ठा एव पूज्या श्री प्रमोद श्री जी म सा की विद्यापीठ संस्थान का उदघाटन कार्य सम्पन हुवा
उस समय के परम पूज्य उपाध्याय प्रवर श्री मनोज्ञसागर जी म सा की प्रेरणा एव सुझबूझ से जेसलमेर के निकट बरहमसर में अति प्राचीन चमत्कारी दादावाड़ी जिर्णोद्धार की भव्य से भव्याति अंजनशलाका एव प्राण प्रतिष्ठा आप ही के पावन सानिध्य में सम्पन हुई।
उसके बाद आप ही के कर कमलों द्वारा ऐतिहासिक संकुल कुशल वाटिका की प्रतिष्ठा 12 फरवरी 2013 को सम्पन हुई।
आप ही कि निश्रा में भारत भर की हजारो दादावाड़ीयो की प्रतिष्ठा सम्पन हुई जो आज खरतरगच्छ की पहचान एव धरोहर है।
उपाध्याय पद पर आसीन होने के बाद खरतरगच्छ की धर्म पताका को सम्पूर्ण जैन बाहुल्य क्षेत्र के साथ साथ दक्षिण भारत के तीनों राज्यो की राजधानीयो में चातुर्मास करने के साथ समुंद्री सीमा के रामेश्वर सहित सभी जगह जगह दादा गुरूदेव की दादावाड़ीयो का निर्माण,जिर्णोद्धार आदि आप श्री ने करवाया। परम पूज्य
खरतरगच्छ आचार्य श्री कैलाससागर सुरीश्वसर जी के देवलोक गमन के बाद आप श्री को कर्नाटक के सिंधनूर में गणाधीश पदवी से विभूषित किया गया।
खरतरगच्छ के 995 वर्षो में ऐतिहासिक गच्छ के 10 दिवसीय समेलन की घोषणा अपने पहले से ही कर रखी थी,पालीताना की पावन भूमि पर लगभग 20 हजार चतुर्विद संघ की उपस्थिति में आप श्री को तपागच्छाधिपति आचार्य भगवंतो की निश्रा एव विराट संख्या में खरतरगच्छ के साधु साध्वी की पावन साक्षी में खरतरगच्छ के सर्वोच्च आचार्य पद से विभूषित किया गया।
तब से आप खरतरगच्छ के मुख्य सेनापति के नाते सम्पूर्ण देश मे धर्म ध्वज की पताका को फहरा रहे है।
पालीताना से उग्र विहार कर आप श्री ने 2016 का चातुर्मास छतीसगढ़ के दुर्ग में उपधान तप की आराधना के साथ सम्पन हुवा।
आप ही कि पावन प्रेरणा से सम्पूर्ण देश के युवाओ को धार्मिक ज्ञान के साथ साथ धर्म का समाज का व्यवहारिक ज्ञान भी सीखाने के उदेश्य से आप श्री ने अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद का गठन किया जिसका पहला समेलन दुर्ग में,दूसरा बीकानेर में हुवा।
गच्छ की महिलाओ को संघठित करने के उदेश्य से अखिल भारतीय खरतरगच्छ महिला परिषद का भी गठन किया गया।
आप श्री का 2017 का बीकानेर चातुर्मास बड़े ही ठाठ बाठ से सम्पन हुवा।
इसके बाद दादा गुरुदेव की प्रचीन भूमि विक्रमपुर में ऐतिहासिक प्रतिष्ठा कर दादा गुरुदेव की स्थली को विश्व के नक्शे पर ला दिया।
वहा से विहार कर आप कई प्राचीन तीर्थो की स्पर्सना करते हुवे सिणधरी पधारे जहा से लगभग 2 हजार पद यात्रियो का छ रि पालित पेदल यात्र संघ नाकोड़ा जी के लिए निकला।नाकोड़ा जी,मांडवला,चितलवाना,सांचोर,धोरीमना,धनाऊ,चोहटन,कुशल वाटिका होते हुवे आप 9 फरवरी को पदारोहण के बाद पहली बार खरतरगच्छ नगरी बाड़मेर पधारे आप श्री के साथ उपाध्ययाय प्रवर श्री मनोज्ञसागर जी म सा एव बहिन म सा सहित कई साध्वी समुदाय पधारे थे।
बाद में आप श्री बालोतरा से ,विक्रमपुर पहुचे जहा दादावाड़ी की प्रतिष्ठा सम्पन कर आप श्री बीकानेर,मांडवला,सांचोर, अहंमदाबाद,बडोदरा, होते हुवे सूरत्त पधारे थे।जहा मुनिसुव्रत स्वामी मन्दिर एव दादावाड़ी की प्रतिष्ठा पाल में सम्पन कर आप चातुर्मास हेतु इंदौर पधारे जहा ऐतिहासिक चातुर्मास सम्पन हुवा।
इसके बाद उजेन में अवन्ती पार्श्वनाथ दादा की जीर्णोद्वार प्रतिष्ठा सम्पन हुई जिसमें 35 हजार श्रद्धालू साक्षी बने।
उसके बाद धुलिया,मांडवला,शत्रुंजय तीर्थ में चातुर्मास कर जिनशासन एवम गच्छ में दिन दोगुनी रात चौगुनी प्रगति की।
पालितना में उपधन तप की आराधना अपने आप में एक अनुपम आराधना थी जिसमे लगभग २०० बचो ने भी भाग लिया।और १५०० अन्य आराधक थे।
श्री शत्रुंजय तीर्थ से श्री गिरनार तीर्थ तक छः रो पालित पद यात्रा का आयोजन गछ के इतिहास में एक नया सर्जन कर गया ।उसके बाद अनेकों जगहों पर दीक्षा,प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाते हुवे,२०२२ गुलाबी नगरी का ऐतिहासिक चतुर्नास एवम प्रतिष्ठा के बाद अनेक क्षेत्रों में विहार करते हुवे इस वर्ष २०२३ का चातुर्मास तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में होने जा रहा है जहा चातुर्मास प्रवेश १ जुलाई को होगा।
आपकी ओजस्वी वाणी,बोलने की संयमित भाषा,कुशल नेतृत्व,एव सभी से एक समान व्यवहार ही गच्छ को नई बुलंदियों की ओर ले जा रहा है।
*खरतरगच्छ के सर्वोच्च पद के आसीन गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री जिन मणीप्रभ सूरीश्वर जी म सा को कोटि कोटि वन्दना।*
*लेखनी में पूर्णतया सावधनी बरती गई है फिर भी कोई भूल हो तो मिच्छामिदुक्कड़म*
*संकलन*
*चंपालाल छाजेड़ सूरत*